Friday, April 30, 2010

अब पैदा कीजिए मनचाहा बच्चा


सुपर मॉम , सुपर डैड के बाद अब सुपर चाइल्ड ... चौंकिए नहीं , बहुत सारे पैरंट्स सुपर किड या सुपर चाइल्ड से सम्मोहित नजर आ रहे हैं और उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं। आजकल ऐसी कई संस्थाएं बाजार में हैं , जो भारतीय पुरातन विद्या और आधुनिक विज्ञान के मेल के आधार पर सुपर चाइल्ड पैदा करने का दावा कर रही हैं। वहीं ज्योतिषी ग्रह - नक्षत्रों के जरिए ऐसा मुमकिन करने की बात कर रहे हैं। इन तमाम लोगों का दावा है कि बच्चे की दिमागी क्षमता और काबलियत को जन्म से पहले ही तय और विकसित किया जा सकता है। इसका लॉजिक यह है कि मां के गर्भ में रहते हुए भी बच्चे पर बाहरी दुनिया का प्रभाव पड़ता है और वह उसी वक्त से चीजों को जानना और समझना शुरू कर देता है। आसपास के माहौल और खानपान का भी असर दिखता है।

दूसरी ओर , मेडिकल और साइंस से जुड़े एक्सपर्ट इस तरह के दावों को खालिस पैसे कमाने का जरिया मानते हैं। उनका मानना है कि समझ और ज्ञान वक्त के साथ आता है। फिर हम ऐसा बच्चा कैसे पैदा कर सकते हैं , जो पैदाइश से ही ज्यादा इंटेलिजेंट और काबिल हो।

सुपर चाइल्ड से मतलब ऐसे बच्चे से है , जो मेधावी हो , जिसमें पैरंट्स की कमियां न आएं और जो कम - से - कम किसी एक विधा में पारंगत हो।
ऐसा बच्चा तभी हो सकता है , जब पैरंट्स के डीएनए से सिर्फ गुण ही गुण बच्चों में आएं। इसे जीन मैनेजमेंट भी कहा जाता है और ज्योतिष में इसके बारे में काफी लिखा - पढ़ा गया है। गर्भधारण करने से पहले से लेकर नौवें महीने तक पैरंट्स ग्रहों के मुताबिक तन और मन दोनों को सेहतमंद रखें तो बच्चा असाधारण बुद्धि वाला होगा। इसकी वजह यह है कि हर महीने का अपना एक ग्रह होता है और अगर उपाय करके उसे मजबूत रखा जाए तो बच्चा गुणवान होगा ही। दरअसल , वैदिक ग्रंथों में कहा गया है कि जीव का जीवन मां के अधीन होता है। मसलन , चरक संहिता में शारीरस्थान के चौथे और छठे अध्याय में साफ - साफ कहा गया है कि माता के हर अच्छे - बुरे कर्म का गर्भ में पल रहे बच्चे पर असर पड़ता है।

मां जब खाती है तो गर्भ को भी पोषण मिलता है , सोती है तो गर्भ को भी आराम मिलता है और जब वह डीप ब्रीदिंग करती है तो गर्भ को भी साफ खून मिलता है यानी मां जो काम करती है , गर्भ भी वही काम करता जान पड़ता है। वह क्या खाती है , क्या पीती है , कैसे विचार मन में रखती है , इन तमाम चीजों का असर होनेवाले बच्चे पर पड़ता है , इसीलिए इस दौरान मां को सात्विक बातें करने , सात्विक चीजें देखने , सात्विक खाना खाने और सात्विक काम करने चाहिए। इधर , पौराणिक और वैदिक ज्ञान के आधार पर विलक्षण या गुणवान बच्चा पैदा करने के तमाम कोर्स भी चल निकले हैं। गांधीनगर में विश्व कल्याण संस्था ने बीते साल सुपर चाइल्ड यूनिवर्सिटी शुरू की। यूनिवसिर्टी में पैरंट्स को ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है , जो प्रतिभाशाली बच्चे पैदा कर सके। चरक संहिता , सुश्रुत संहिता , अष्टांग हृदय और दूसरी आयुवेर्दिक किताबों और मॉडर्न जिनेटिक साइंस को अच्छी तरह पढ़ने के बाद यह कॉन्सेप्ट तैयार किया है।

वैसे , सुपर चाइल्ड के कॉन्सेप्ट पर लोगों की अलग - अलग राय है। कुछ लोग मानते हैं कि सुपर चाइल्ड तो नहीं , लेकिन बेहतर बच्चे जरूर पैदा किए जा सकते हैं। इसका आधार वे मां और बच्चे के बीच के कनेक्शन , मंत्र और म्यूजिक को बताते हैं।

लाइफ एसेंस अकैडमी के ऐसे ही प्री - नेटल कोर्स ' इनफेंट एसएसवाई प्रोग्राम ' बच्चे के फिजिकल , इमोशनल , सोशल और स्प्रिचुअल डिवेलपमेंट में मदद करता है। मां के गर्भ से ही चीजों को जानने - समझने लगता है और उसी वक्त उसमें संस्कार पड़ने लगते हैं। बच्चे को विजुअलाइज करने , उससे बातें करने का असर बच्चे पर पड़ता है। पहले दो महीने में ब्रेन वेव्स और चार महीने में सभी सिस्टम बनने लगते हैं और छह महीने से भ्रूण की समझ डिवेलप होने लगती है। यहां तक कि सातवें महीने से विजुअल कार्ड्स के जरिए आप बच्चे की टीचिंग शुरू कर सकते हैं।

इस तरह के प्रोग्राम के पीछे लॉजिक यह है कि छह साल तक बच्चे के दिमाग का दाहिना हिस्सा ज्यादा विकसित होता है और छह साल के बाद बायां। दायां हिस्सा स्टोरेज और इमोशंस से संबंधित होता है , जबकि बायां तर्क से। इस दौरान बच्चा बेशक रिस्पॉन्ड नहीं करता है , लेकिन उसके दिमाग में सब कुछ स्टोर हो रहा होता है। बड़ा होकर वह इस नॉलेज का इस्तेमाल करता है। हमारे दिमाग में करीब 10 हजार खरब बेन सेल्स होते हैं और अगर उनका इस्तेमाल न किया जाए तो 10 साल की उम्र तक इनमें से 50 करोड़ नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में इनका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना बेहतर है। कोर्सों में सिखाए जानेवाले मंत्रों के पीछे लॉजिक है कि ज्यादातर ये संस्कृत भाषा में होते हैं और संस्कृत दुनिया की सबसे ज्यादा साइंटिफिक भाषा है। इसी तरह , इंडियन क्लासिकल वोकल म्यूजिक काफी असरदार है। पौधों पर एक्सपेरिमेंट किया गया तो वे इसी म्यूजिक की ओर सबसे ज्यादा झुके। प्राणायाम और योग का भी बच्चे की सेहत पर भी असर होता है।

माना जाता है कि बच्चा मां के पेट में ही 12 अलग - अलग तरह के टेस्ट चख सकता है। क्वात्रा के मुताबिक जिन बच्चों को मां के गर्भ से ही पढ़ाया और समझाया जाता है , वे बाहरी दुनिया में आकर ज्यादा तेज दिमागवाले साबित होते हैं। बच्चा मां के गर्भ में ज्यादातर वक्त मेडिटेशन में होता है। इस दौरान सबसे ज्यादा डेल्टा वेव्ज निकलती हैं , जिनकी वजह से उसकी ग्रहण करने की क्षमता भी अच्छी होती है। हालांकि वह यह भी कहती हैं कि हम मनपसंद बच्चा गढ़ने का दावा नहीं करते लेकिन बेहतर बच्चा जरूर पैदा कर सकते हैं। (स्रोत:नवभारत टाइम्स)

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